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इस इमारत में नारा काल में बनाई गई एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर, बोंशो घंटा स्थापित है, जो मीइदेरा मंदिर के इतिहास का प्रतीक है। इसने कई आपदाओं का सामना किया है। इस घंटे को एक प्रसिद्ध कथा के लिए जाना जाता है जिसके अनुसार मुसाशिबो बेंकेइ ने इसे मीइदेरा मंदिर से हिएइ पर्वत तक खींच कर ले गया था, अतः इसे आमतौर पर "बेंकेइ का घसीटा गया घंटा" कहा जाता है। यह प्राचीन घंटा दूसरी कथाओं में भी आता है उदाहरण के तौर पर, तावारा नो तोता हिदेसातो के "विशाल कनखजूरा का वध" इत्यादि।
कामाकुरा काल के आखिरी अवधि के "ओन्जोजी मंदिर के अहाते के पुराने नक्शे " में भी एक "शोदो घंटाघर" उसी स्थान अर्थात कोन्दो के पश्चिम में खींचा गया है। वर्तमान इमारत को पुराने घंटाघर की सामग्री का उपयोग करके 1930ईo में पुनर्निर्मित किया गया था।

“नारा काल”

हेइजो-क्यो काल जिसका अर्थ है राजधानी को नारा में स्थानांतरित किया जाना। इसकी अवधी 70 वर्षोँ (710–784) की है और यहाँ से गेनमेई , शोमू, कोकेन, जूनिन,शोतोकू और कोतोकू सात सम्राटों ने शाषण किया। कला के इतिहास में हाकुहो काल (670–710) प्रारंभिक नारा काल के रूप में जाना जाता है, और इस काल को तेंप्यो काल कहा जाता है। नारा राजवंश।

“बोंशो घंटा”

बोंशो घंटा

चीनी घंटा जो एक प्राचीन वाद्य यंत्र है यहाँ इसे मंदिर में झूलते घंटे के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। अक्सर, इसे घंटाघर में लटका दिया जाता है और उसे लकड़ी के हथौड़े से बजाते हैं ।

“मुसाशिबो बेंकेइ”

मुसाशिबो बेन्केइ(1155–1189) प्रारंभिक कामाकुरा काल में एक सन्यासी था। उसके बचपन का नाम ओनिवाकामारु था। वह कुमानो बेत्त्तो (कुमानो मंदिर का प्रबंधक) का पुत्र था।
लोक-साहित्य के अनुसार, उसने अपना नाम मुसाशिबो रखा, वह हिएइ पर्वत पर स्थित एंरियाकुजी मंदिर के पश्चिम में रहता था। बाद में वह मिनामोतो नो योशित्सुने की सेवा में रहा और प्रसिद्धि प्राप्त की। वह हमेशा योशित्सुने के साथ वाफदार रहा यहाँ तक के उसके बुरे वक्तो में भी। उसने योशित्सुने को आताका के पास खतरे से बचाया और बाद में कोरोमो नदी की लड़ाई में मृत्यु को प्राप्त हुआ। वह जापानी लोक-साहित्य का एक बहुचर्चित पात्र है, क्योंकि उसका ज़िक्र गीकेइ-कि (योशीत्सुने के लेख ) , योक्योकू (नोह के लोकगीत ) और कोवाका बूक्योकू (जापानी सस्वर नृत्य) में भी आता है ।

“हिएइ पर्वत”

क्योतो शहर के उत्तरपूर्व, क्योतो और शिगा प्रान्त के सीमा पर फैले पहाड़। पुराने ज़माने से यह ओजो चिंगो (शाही महल की रक्षा के लिए) के पवित्र पर्वत के तौर पर जाने जाते है। इसके दो पर्वतीय चोटी है: पूर्व को ओहिए या ओदाके (848 मीटर) और पश्चिम को शिमेइ-गाताके (839 मीटर) कहा जाता है। पूर्व की ओर एनरयाकुजी मंदिर है, जो तेंदाई संप्रदाय का प्रमुख मंदिर है।

“तावारा नो तोता”

मध्य हेइआन काल (794–1185) का शिमोत्सुके नामक एक प्रभावशाली परिवार। कहा जाता है कि वह फुजिवारा नो उओना का वंशज था जो बाएँ बाजू के मंत्री थे। शिमोत्सुके प्रान्त का एक फौजी हवालदार। 940 ईo में उसने ताइरा नो मासाकादो की बगावत को असफल किया और इस उपलब्धि के लिए उसे शिमोत्सुके का राज्यपाल नियुक्त किया गया। उससे जुडी कई लोक-कथाएं मशहूर हैं, जैसे तीरंदाज़ी का माहिर, मिकामी पर्वत के एक विशालकाय कनखजूरा का वध आदि । जन्म और मृत्य का वर्ष अज्ञात है।

“कामाकुरा काल”

मिनामोतो नो योरितोमो के द्वारा कामाकुरा में शोगून व्यवस्था कायम करने से लेकर होजो ताकातोकि के मृत्यु 1333 ईo तक लगभग 150वर्षों तक के अवधी का नाम।

“ओन्जोजी मंदिर के अहाते के पुराने नक्शे”

ओन्जोजी मंदिर के अहाते के पुराने नक्शे

मंदिर के अहाते का एक नक्शा जो पांच लटकते स्क्रॉल के एक सेट पर बनाया गया था: जो उत्तरी खंड, मध्य खंड, दक्षिणी खंड, सान-बेश्शो (तीन शाखाएं) और न्योइजी मंदिर को दर्शाता है। "जिमोंन देनकी होरोकू" (मंदिर के दस्तावेज़) को नज़र में रखते हुए कामाकुरा काल के उत्तरार्ध का मंदिर का खांका तैयार किया गया। यह मध्य कालीन जापान का एक महत्वपूर्ण उल्लेख है जो मिइदेरा के सीमा में स्थित मंदिरों का स्थान दर्शाता है । एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर जो 14वीं शताब्दी कामाकुरा काल में बनाई गई।

“शोदो घंटाघर”

शोदो घंटाघर

शोदो घंटाघर

आधुनिक काल