“शोइन ज़ुकूरी”
हेइआन काल के कुलीन समाज से निकला शिन्देन-ज़ुकुरी शैली, समय के परिवर्तन के साथ-साथ तरक्की करता गया। कामाकुरा काल से आगे, जब शासन सामुराई सैनिक के हाथ में गई, तो उनके जीवन में खासकर अतिथि सत्कार की ज़रुरतो में भी यह शैली काम में आई। इसके अलावा इसपर चीन से आए ज़ेन वास्तुकला का भी प्रभाव पड़ा । और यह सैन्य समाज के निवास को एक अनूठा रंग प्रदान करता गया।
“यामाओका दोआमी कागेतोमो”
सेंगोकू काल (1467-1615) से आज़ुचिमोमोयामा काल (1568-1600) तक का एक सेनापति। ओमी सेताजो महल (वर्तमान-ओत्सू शहर) के मालिक यामाओका-मिमासाका-कागेयुकी के चौथे पुत्र के रूप में जन्म हुआ। पहले, यामाओका परिवार के पूर्वज शिहिरो द्वारा स्थापित मिइदेरा मंदिर के कोजोइन के पुजारी बने और सेनकेइ नाम पड़ा। बाद में आशिकागा योशिआकी की सेवा में रहे, और फिर तोयोतोमी हिदेयोशी के सलाहकार (ओतोगिशु ) के तौर पर उनके सबसे करीबी सेवक बने और दोआमी कहलाए। सेकिगाहारा के यूद्ध के बाद 1601 ईo में तोकुगावा इयेयासु के द्वारा 9 हज़ार कोकू (9000उब्जाऊ खेत ) दिए गए और कोगा-गुमी समूह उन्हें सौंप दिया गया ।
1603 ईo में 10,000 कोकू वाले हिताची फुत्तोहान (वर्तमान इबाराकी प्रान्त, इनाशिकी शहर का फुत्तो नमक स्थान) के पहले दाइम्यो बने।
“एदो शोगून व्यवस्था”
वह शोगून व्यवस्था जो जिसे तोकुगावा इयेयासु ने (1603 ईo) एदो में स्थापित किया था। यह1867 ईo में तोकुगावा योशिनोबू द्वारा शाही शासन की पुनर्स्थापना तक 15 शोगून के कार्यकाल में 265 वर्षों तक चला। ताईरो (उम्रदराज़), रोजू (शोगून व्यवस्था के सीनियर सदस्य) वाकादोशियोरी (रोजू से निचला स्थान) आदि प्रशाशनिक पदों पर नियुक्ति हुई। जिनमें ताइरो का स्थान अनियमित था। मंदिरो के सञ्चालन, जीन्जा (मंदिर) और ज़मीनों से जुड़े मुद्दे को देखने के लिए सान-बुग्यो (3 प्रबंधक) जिनमे जीशा-माची और कान्जो-बुग्यो भी शामिल हैं को प्रबंधक नियुक्त किया गया था। इसके अलावा ओमेत्सुके और मेत्सुके शाषण के काम पर नज़र रखने के लिए नियुक्त किये गए थे।
“हेइनोउची मासानोबु”
हेइनोउची मासानोबू (1583–1645) प्रारंभिक एदो काल का माहिर बढ़ई। वह कीइ-प्रान्त के नागा नामक स्थान (वर्तमान- वाकायामा प्रान्त) का रहने वाला था, वह अपने पिता योशिमासा के साथ तोयोतोमी परिवार और तोकुगावा परिवार से जुड़े निर्माण के कार्य में रहा।
1632 ईo में, एदो शोगुन वयवस्था ने उन्हें वास्तुकला और निर्माण से जुड़े मामलों के लिए एक मास्टर बढ़ई के रूप में नियुक्त किया, जो की शितेन्नोजी स्कूल और शिल्पियों के समूह के प्रमुख हुए, जहाँ शिल्पियों का समूह जापानी शैली में मंदिर और मंदिरों के निर्माण से जुड़े अपने कौशल को नए लोगो तक पहुंचाते थे। उन्हें वास्तुकला तकनीकों के रहस्यों को बताती किवारी-शो (वास्तुकला से जूरी किताब) "शोमेइ" नामक पुस्तक के लेखक के रूप में भी जाना जाता है।
“किवारीशो "शोमेइ"”
एदो शोगून व्यवस्था से जुड़े एक मास्टर बढइ हेइनोउची मासानोबू (1583–1645) द्वारा 1608 ईo में लिखी गई एक ऐसी किताब जो वास्तुकला से जुड़े तकनीकी रहस्यों को बताती है। वास्तुकला से जुड़े इस तरह की किताबों को "किवारी-शो" कहते हैं, "शोमेई" इस क्षेत्र में प्रतिनिधि पुस्तक के रूप में जानी जाती है।
“मुरोमाची काल”
वह काल जब अशिकागा वंश ने सत्ता संभाली और क्योतो मुरोमाची में शोगून व्यवस्था की स्थापना की गई। यह 1392 ईo में उत्तर और दक्षिण राजवंशों के एकीकरण से लेकर 1573 ईo में ओदा नोबुनागा द्वारा 15वे शोगुन की पराजय तक के लगभग 180 साल को रेखांकित करता है। उसके बाद अर्थात मेइओ काल (1492-1501) के राजीनीतिक परिवर्तन के बाद के समय को सेंगोकू अर्थात युद्धरत राज्यों के काल के नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार उत्तरी और दक्षिणी राजवंश की अवधी (1336-1392) शुरुआती मुरोमाची काल में शामिल हैं।
“पर्वतीय घर”
आशिकागा योशिमासा का बंगला। वर्तमान में गिन्काकुजी मंदिर।
“मुकाशी रोक्केन शिचीकेन नो शूदेन नो ज़ू”