TEXT
READER

यह बौद्ध मंदिर सेइर्योजी-शैली शाका न्योराई प्रतिमा पर आधारित है । शुमिदान मुरोमाची काल (1336–1573) से है, जिसके ऊपर और नीचे कुरिगाता आकृतियाँ और कमल की पंखुड़ियों के साथ सजाया गया है, और केंद्रीय कोज़ामा में एक विस्तृत काराकुसा पैटर्न की एक पारदर्शी नक्काशी है।1830 ईo में काराहाफ़ू की पूजा को जोड़ा गया और अब इसे "शाकादो" कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि शाही महल के सेइर्योदेन​को मीइदेरा मंदिर में स्थानांतरित कर दिया गया था। यह एक साधारण आवासीय शैली की वास्तुकला है, जो सरु की छाल की छत पर हान्शिगे दार्कि पेड़ से बनाई गई है। आज, हम एक बड़े मध्यकालीन मंदिर में कई भिक्षुओं और लोगों के द्वारा आयोजित "भोजन कक्ष" की प्राचीन शैली बता रहे हैं।

“सेइर्योजी-शैली शाका न्योराई प्रतिमा”

सेइर्योजी-शैली शाका न्योराई प्रतिमा

“शुमिदान”

शुमिदान

“मुरोमाची काल”

वह काल जब अशिकागा वंश ने सत्ता संभाली और क्योतो मुरोमाची में शोगून व्यवस्था की स्थापना की गई। यह 1392 ईo में उत्तर और दक्षिण राजवंशों के एकीकरण से लेकर 1573 ईo में ओदा नोबुनागा द्वारा 15वे शोगुन की पराजय तक के लगभग 180 साल को रेखांकित करता है। उसके बाद अर्थात मेइओ काल (1492-1501) के राजीनीतिक परिवर्तन के बाद के समय को सेंगोकू अर्थात युद्धरत राज्यों के काल के नाम से भी जाना जाता है। एक मान्यता के अनुसार उत्तरी और दक्षिणी राजवंश की अवधी (1336-1392) शुरुआती मुरोमाची काल में शामिल हैं।

“कुरिगाता आकृतियाँ और कमल की पंखुड़ियाँ”

कुरिगाता आकृतियाँ और कमल की पंखुड़ियाँ

“कोज़ामा”

कोज़ामा

सुमिदान के मंच के किनारों को खुबसूरत बनाने के लिए लकड़ी को खोखला करके बनायी गयी कलाकृति।

“काराकुसा पैटर्न की एक पारदर्शी नक्काशी”

काराकुसा पैटर्न की एक पारदर्शी नक्काशी

“काराहाफ़ू की पूजा”

काराहाफ़ू की पूजा

“सरु की छाल की छत”

सरु की छाल की छत

सरू की छाल को छीलकर उसमे बांस की कील ठोकने की प्रक्रिया से बनाई गई छत।

“हान्शिगे दार्कि”

हान्शिगे दार्कि

सामान्य से ज्यादह अंतराल की बल्ली।आमतौर पर यह अंतराल बल्ली के निचले सिरे की चौडाई और लम्बाई के योग के अधर पर तय होती है।

मुरोमाची काल