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शिंरा ज़ेन शिंदो श्राइन मीइदेरा मंदिर के चिन्जूशा श्राइनों में से एक है जिसकी संरचना होकुइन​ गारान अर्थात उत्तरी मंदिर क्षेत्र में केंद्रित है। वर्तमान इमारत को 1347ईo में अशीकागा ताकाउजी द्वारा बहाल किया गया था। मंदिर की संरचना उत्कृष्ट है, जिसमें सरू की छाल की छत के बह जाने जैसी सुंदरता दिखती है। यह “नागारे ज़ुकूरी” शैली के उत्कृष्ट उदाहरण के तौर पर जानी जाती है।
इमारत के अंदर स्थित शुमिदान चबूतरे में शिराकी पेड़ की अलमारी और मीइदेरा मंदिर के संस्थापक चिशो दाइशी से संबंधित राष्ट्रीय धरोहर शिंरा म्योजिन की बैठी हुई प्रतिमा स्थापित है।
हेइआन​ काल में, मीनामोतो नो योरियोशी के तीसरे बेटे और मिनामोतो परिवार के कावाची गेन्जी शाखा के नेता योशीमित्सु ने शिंरा म्योजिन के श्राइन के सामने अपनी उम्र के आने का जश्न अर्थात जवान होने का जश्न मनाया और शिंरा साबुरो योशिमित्सु का नाम से जाने गए। इस घटना के कारण मीइदेरा मंदिर मिनामोतो परिवार के साथ-साथ अशीकागा परिवार द्वारा सम्मानित किया गया, जो मिनामोतो की कावाची गेन्जी शाखा से आता है।

“चिन्जूशा”

एक मंदिर जिसका निर्माण एक बौध मंदिर की रक्षा के लिए हुआ।

“होकुइन​ गारान”

होकुइन​ गारान

“अशीकागा ताकाउजी”

आशिकागा ताकाउजी(1305–1358) मुरोमाची काल का प्रथम शोगून था (कार्यकाल- 1338–1358)। उसे सम्राट गोदाइगो के असली नाम ताकाहारू से एक कांजी अक्षर "ताका" दिया गया और जिससे उसका नाम ताकाउजी परा। गेंको यूद्ध में, ताकाउजी ने रोकुहारा को तबाह करके केन्मु पुनर्स्थापन की नीव डाली। बाद में उसने सम्राट गोदाइगो से बगावत कर दी और सम्राट कोम्यो का साथ दिया, तब से वह सेइइताई शोगून (शोगून) कहलाया और मुरोमाची शोगून को व्यवस्था कायम किया।

“सरु की छाल की छत”

सरु की छाल की छत

सरू की छाल को छीलकर उसमे बांस की कील ठोकने की प्रक्रिया से बनाई गई छत।

“नागारे ज़ुकूरी”

नागारे ज़ुकूरी

मुख्य जीन्जा (शिन्तो मंदिर) के निर्माण की एक शैली। त्रिअंकी छत (किरिज़ुमा ज़ुकुरी) को कर्व कर दिया जाता है जिसमे मुख्य द्वार साइड में बनाए जाते हैं। सामने की छत के प्रवाह को लंबा कर दिया जाता है जिससे वह दूसरी छत से काफी लम्बी हो जाती है।

“चिशो दाइशी”

चिशो दाइशी

814 ईo में कागावा प्रान्त (वर्तमान) के ज़ेन्त्सुजी शहर में जन्म हुआ। पिता वाके घराने से और माँ कुकाई की भतीजी थीं। 15 वर्ष की आयु में हिएई पर्वत पर चले गए और वहां गिशिन(778~833) के शिष्य बनें। 40 वर्ष की आयु में 853 ईo में तांग (चीन) चले गए, जहाँ उन्होंने तेंदाई पर्वत और चांग-अन पर तेंदाई ज्ञान और गूढ़ बौद्ध धर्म की शिक्षा ली और बाद में ये ज्ञान जापान में फैलाया। तांग (चीन) से लेकर लौटे धार्मिक सामग्री मीइदेरा के तोइन कक्ष में संरक्षित किया, और खुद मंदिर के प्रथम मुख्य संचालक का पद संभाला, और मीइदेरा मंदिर को तेंदाई संप्रदाय का मंदिर बनाया। एक ऐसी बुनियाद डाली के बाद में इसे जिमोन शाखा के मुख्य मंदिर के तौर पर तरक्की मिली। उन्हें 868 ईo में तेंदाई संप्रदाय के 5वें मुख्य पुजारी के तौर पर नियुक्त किया गया और उसके बाद 23 साल से भी ज्यादह समय उन्होंने बौध धर्म की समृद्धि के लीये समर्पित कर दिया। 29अक्टूबर 891 ईo में उनका देहांत हुआ।

“शिंरा म्योजिन”

शिंरा म्योजिन

मीइदेरा मंदिर के रक्षक देवता। देवता शिंरा म्योजिन की बैठी हुई मूर्ति, जिसे एक विशिष्ट हेइआन युग के देवता के मूर्ति के तौर पर राष्ट्रीय खजाने के रूप में नामित किया गया है। कामाकुरा काल (1185–1333) के कथा संग्रह "कोकोन-चोमोन्ज्यू" में भी इस दिव्य देव का उल्लेख है, पुराने लोग इनका बहुत सम्मान करते थे। मिनामोतो-नो-योशिमित्सु शिंरा म्योजिन का उपासक बन गया और अपना नाम "शिंरा साबुरो" रख लिया, इसी वजह से इस देवता का मिनामोतो परिवार के रक्षक देवता के रूप में सम्मान किया जाता है ।

“हेइआन काल”

हेइआन काल 794 ईo में सम्राट कान्मु द्वारा राजधानी के स्थानांतरण से लेकर 1185 ईo में कामाकुरा शोगून व्यवस्था की स्थापना तक लगभग 400 वर्षों तक की अवधी को कहते हैं, जिसमे शासन का केंद्र हेइआनक्यो (क्योतो) था। इस काल को आमतौर पर तिन खण्डों में बांटते हैं: प्रारंभिक, मध्य और उत्तरार्ध हेइआन काल। दुसरे शब्दों में रित्सुरयो कोड के आधार पर राजनितिक व्यवस्था का पुनरुद्धार की अवधी, प्रतिशासनकाल और इन्सेइ (सेवानिवृत्त सम्राट द्वारा शासन) काल (उत्तरार्ध हेइआन काल ताइरा वंश का शासन रहा) भी कहते है। हेइआन राजवंश।

“कावाची गेन्जी”

कावाची गेंजी सेइवा गेंजी वंश के खानदानी सिलसिले के एक सदस्य हैं, जो त्सुबोई के स्थाई निवासी थे (वर्तमान-ओसाका प्रान्त के हाबिकिनो शहर में त्सुबोई )। मिनामोतो नो योरिनोबू जो कावाची गेंजी के प्रथम पूर्वज थे उनको 1020 में कावाची प्रान्त का प्रांतीय गवर्नर के रूप में नियुक्त किया गया, और उसके बाद उनकी तिन नसलें उस स्थान पर रहीं इसलिए वह कावाची गेंजी कहलाने लगे।
ऐसा माना जाता है की, योशिमित्सु (1045–1127) ने मीइदेरा मंदिर के उत्तरी भाग में कोंकोइन मंदिर का निर्माण करवाया और अपने पुत्र काकुगी को मुख्य पुजारी के तौर पर नियुक्त किया। योशिमित्सु की कब्र शिंरा ज़ेन्शिन्दो मंदिर के पीछे की पहाड़ी पर स्थित है।

नान्बोकुचो काल (जोवा युग तीसरा वर्ष, 1347 ईo)