“तोकुगावा इएयासु”
तोकुगावा इएयासु (1603〜1605 गद्दी की अवधी ) तोकुगावा शोगून व्यवस्था का पहला शोगुन था। पहले वह इमागावा योशिमोतो के अधिन रहा, बाद में वह ओदानोबू नागा से मिल गया और आखिर में उसने तोयोतोमी हिदेयोशी के साथ गठजोड़ किया, 1590 ईo में 8 कान्तो राज्य उसके अधिकार में आ गए और वह एदो महल में दाखिल हुआ। हिदेयोशी की मृत्यु के बाद उसने फुशिमि महल में प्रवेष किया। 1600 ईo इसवी में सेकिगाहरा के यूद्ध में इशिदा मित्सुनारी को पराजित कर, 1603 ईo में वह शोगुन के पद पर नियुक्त किया गया, और उसने एदो बाकुफु (एदो वंश) की शुरुआत की। उसने तोकुगावा हिदेतादा के लिए शोगुन की गद्दी त्याग दी और ओगोशो (महापुरूष)कहलाया। 1607 ईo में शोगुन के पद से सेवानिवृत्त होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण फैसले खुद से लीये, और ओसाका के रण में तोयोतोमी को ध्वस्त कर , 260 से अधिक वर्षों चलने वाली बाकुफु की नींव डाली। मरणोपरांत उसका नाम तोशोदाइगोंगेन पड़ा।
“सेसोन्जी मंदिर”
यह सोतो संप्रदाय का एक मंदिर है जो नारा प्रान्त के योशिनो जिले के ओयोदो-चो के हिसो में स्थित है। यह एक प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में माना जाता है की योशिनो नदी के दाहिने तट पर इसका निर्माण आसुका काल (538–710) से शुरू होकर प्रारंभिक हाकुहो काल तक चला। यह हिसोदेरा मंदिर के नाम से जाना जाता था, और वह स्थान जहाँ हिसोदेरा के अवशेष मौजूद हैं उसे 1927 ईo में राष्ट्रीय एतिहासिक स्थल घोषित कर दिया गया। इसे योशिनोदेरा मंदिर या गेंकोजी मंदिर भी कहते हैं।
“तोयोतोमी हिदेयोशी”
आजुचिमोमोयामा काल का एक सेनापति। शुरू में वह ओदा नोबुनागा की सेवा में रहा , पर जब 1582 ईo में होन्नोजी हादसे में ओदा नोबुनागा की मृत्यु हो गई तो उसने शीघ्र ही खुद को उसका उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और शत्रुओं को हराकर राज्य को संयुक्त किया। उसने 1583 ईo में ओसाका महल का निर्माण शुरू किया जिसे 5 मंजिले (बाहर से) और 8 मंजिले (अंदर से) मीनारों से सुसज्जित किया गया, जो इस महान सेनापति को शोभनीय थी। होताइको के नाम से मशहूर भव्य मोमोयामा संस्कृति जिसका प्रतिनिधित्व चा-नो-यू और कानो स्कूल के चित्र करते हैं, इसी काल में विकसित हुए।
मीइदेरा मंदिर के साथ उसके सम्बंध लगभग अच्छे थे, परन्तु अपने आखिरी वर्षों 1595 ईo में अचानक उसने मीइदेरा मंदिर की सारी सम्पति को ज़ब्त करने का आदेश जारी किया। अगस्त1598 ईo में उसके मरणोप्रांत, उसकी पत्नी किता नो मांदोकोरो के द्वारा मीइदेरा मंदिर को पुनः बहाल किया गया।
“फुशिमी महल”
इस महल को तोयोतोमी हिदेयोशी के द्वारा 1592 ईo में क्योतो शहर के हिगाशी फुशिमि वार्ड के हिगाशी फुशिमि पर्वत पर बनाया गया । यह 1596 ईo के एक भूकम्प में तबाह हो गया, कोहाता पर्वत पर लेजाकर इसका पुनर्निर्माण किया गया। क्योतो के अवरोध को भी कब्ज़े में कर लिया गया। बाद में एदो शोगुन् ने इसे नष्ट कर दिया, इसके अवशेष दाइतोकुजी मंदिर ,निशि होंगांजी मंदिर और तोयोकुनी अदि में भेज दिया गया।
“शाकासान्ज़ोन्ज़ो”
एक त्रिस्तरीय शैली जिसके केंद्र में गौतम बुध की प्रतिमा और बाईं और दाईं ओर क्योजी प्रतिमाए स्थित होती हैं। क्योजी के तौर पर, निम्नलिखित में से किसी भी दो बोधिसत्व को रखा जाता है: मोंजू (मंजूश्री) और फुगेन (सामन्तभद्र ), याकुओ (भैशाज्यराज) और याकुजो (भैशाज्यसमुदगात) , आनन (आनंद) और काशो (कश्यप)।
“ स्तंभ”
गिरने से बचने के लिए गलियारे के बाहरी सिरे पर हाथ रेलिंग लगाई गई है।
“कुमिमोनो”
यह मुख्य रूप से खंभे के शीर्ष पर स्थित होता है। इसकी संरचना एक बीम को सहारा देने के लिए होता है जोकि ब्लॉक और ब्रैकेट से जुड़ छत को सहारा देता है। इसे तोक्यो या मासुगुमी भी कहा जाता है।
“मितेसाकि”
एक तरफ से देखने पर ,दिवार से तिन लाइन में निकली हुई बेयरिंग ब्लॉक वाली तोक्यो ।
“सोरिन”
बौध शिवालय के सबसे ऊपरी तल पर धातु से बना हिस्सा। हालाँकि उसका एक हिस्सा कुरिन है, पर आमतौर पर सोरिन के सम्पूर्ण हिस्से को कुरिन कहा जाता है ।