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यह मीइदेरा मंदिर का सामने वाला दरवाज़ा है, और यह सरु की छाल की छत का टॉवर गेट है इसको सांगेन इक्को कहा जाता है। यह मूल रूप से शिगा प्रान्त के कोनँ शहर में जोराकुजी मंदिर के गेट पर तोयोतोमी हिदेयोशी द्वारा फुशिमी महल में ले जाया गया था जिसे 1601 ईo में, तोकुगावा इएयासु ने मीइदेरा मंदिर में भेजा।
इसे 1452 ईo में बनाया गया। काएरुमाता की मुर्तियों और कुमिमोनो में मुरोमाची काल (1336–1573) की विशेषताएं दिखाई देती हैं। गेट के दोनों किनारों को कोंगो रिकिशी की मूर्तियों से सजाया गया है, जिसे 1457 ईo में बनाया गया था। 1300 वर्षों से भी अधिक का इतिहास रखने वाले जोसात्सु के सामने के द्वार के रूप में यह काफी उपयुक्त है।

“सांगेन इक्को”

सांगेन इक्को

“सरु की छाल की छत”

सरु की छाल की छत

सरू की छाल को छीलकर उसमे बांस की कील ठोकने की प्रक्रिया से बनाई गई छत।

“टॉवर गेट”

टॉवर गेट

दोमंजिला द्वार ,जिसमे पहले मंजिल पर कोई छत नहीं, बल्कि किनारे कोशिगुमी से बंधे हुए हैं, और सिर्फ दुसरे मंजिल पर ही छत है ।

“जोराकुजी मंदिर”

कोनान शहर के निशितेरा में स्थित तेंदाई संप्रदाय की एक प्राचीन मंदिर है। ओमी साईकोकू तीर्थ स्थलों में यह पहला धर्मस्थल है। इसे आम तौर पर "निशितेरा मंदिर" कहते हैं। इसका आधार नारा काल में रोबेन द्वार रखा गया, कहा जाता है की आबोशियामा गोसेंबो के केंद्र के रूप में इसे समृद्धि प्राप्त हुई। कहते हैं मुख्य हॉल जिसमे बुद्ध की ख़ुफ़िया सेंजु कान्नोन मूर्ति स्थित है और तीन मंजिला धौरहरा जैसे राष्ट्रीय खजाने के रूप में नामित बहुत सी सांस्कृतिक धरोहर मौजूद है।

“तोयोतोमी हिदेयोशी”

आजुचिमोमोयामा काल का एक सेनापति। शुरू में वह ओदा नोबुनागा की सेवा में रहा , पर जब 1582 ईo में होन्नोजी हादसे में ओदा नोबुनागा की मृत्यु हो गई तो उसने शीघ्र ही खुद को उसका उत्तराधिकारी घोषित कर दिया और शत्रुओं को हराकर राज्य को संयुक्त किया। उसने 1583 ईo में ओसाका महल का निर्माण शुरू किया जिसे 5 मंजिले (बाहर से) और 8 मंजिले (अंदर से) मीनारों से सुसज्जित किया गया, जो इस महान सेनापति को शोभनीय थी। होताइको के नाम से मशहूर भव्य मोमोयामा संस्कृति जिसका प्रतिनिधित्व चा-नो-यू और कानो स्कूल के चित्र करते हैं, इसी काल में विकसित हुए।

मीइदेरा मंदिर के साथ उसके सम्बंध लगभग अच्छे थे, परन्तु अपने आखिरी वर्षों 1595 ईo में अचानक उसने मीइदेरा मंदिर की सारी सम्पति को ज़ब्त करने का आदेश जारी किया। अगस्त1598 ईo में उसके मरणोप्रांत, उसकी पत्नी किता नो मांदोकोरो के द्वारा मीइदेरा मंदिर को पुनः बहाल किया गया।

“फुशिमी महल”

इस महल को तोयोतोमी हिदेयोशी के द्वारा 1592 ईo में क्योतो शहर के हिगाशी फुशिमि वार्ड के हिगाशी फुशिमि पर्वत पर बनाया गया । यह 1596 ईo के एक भूकम्प में तबाह हो गया, कोहाता पर्वत पर लेजाकर इसका पुनर्निर्माण किया गया। क्योतो के अवरोध को भी कब्ज़े में कर लिया गया। बाद में एदो शोगुन् ने इसे नष्ट कर दिया, इसके अवशेष दाइतोकुजी मंदिर ,निशि होंगांजी मंदिर और तोयोकुनी अदि में भेज दिया गया।

“तोकुगावा इएयासु”

तोकुगावा इएयासु (1603〜1605 गद्दी की अवधी ) तोकुगावा शोगून व्यवस्था का पहला शोगुन था। पहले वह इमागावा योशिमोतो के अधिन रहा, बाद में वह ओदानोबू नागा से मिल गया और आखिर में उसने तोयोतोमी हिदेयोशी के साथ गठजोड़ किया, 1590 ईo में 8 कान्तो राज्य उसके अधिकार में आ गए और वह एदो महल में दाखिल हुआ। हिदेयोशी की मृत्यु के बाद उसने फुशिमि महल में प्रवेष किया। 1600 ईo इसवी में सेकिगाहरा के यूद्ध में इशिदा मित्सुनारी को पराजित कर, 1603 ईo में वह शोगुन के पद पर नियुक्त किया गया, और उसने एदो बाकुफु (एदो वंश) की शुरुआत की। उसने तोकुगावा हिदेतादा के लिए शोगुन की गद्दी त्याग दी और ओगोशो (महापुरूष)कहलाया। 1607 ईo में शोगुन के पद से सेवानिवृत्त होने के बावजूद महत्त्वपूर्ण फैसले खुद से लीये, और ओसाका के रण में तोयोतोमी को ध्वस्त कर , 260 से अधिक वर्षों चलने वाली बाकुफु की नींव डाली। मरणोपरांत उसका नाम तोशोदाइगोंगेन पड़ा।

“काएरुमाता”

काएरुमाता

यह एक धरा है जो दो पैरों वाले एक क्षैतिज तल पर रखा जाता है, जैसे कि मेंढक अपने पैरों को खोलता है, दोनों बाएं और दाएं हेम एक घुमावदार आकार में फैले हुए होते हैं। यह भी कहा जाता है कि याजीरी (तीर के नोक में लगाई जाने वाली एक नोकीली चीज़) के आकार में से एक है जो दो भागों में विभाजित कारीमाता से निकला है।

“कुमिमोनो”

कुमिमोनो

यह मुख्य रूप से खंभे के शीर्ष पर स्थित होता है। इसकी संरचना एक बीम को सहारा देने के लिए होता है जोकि ब्लॉक और ब्रैकेट से जुड़ छत को सहारा देता है। इसे तोक्यो या मासुगुमी भी कहा जाता है।

“कोंगो रिकिशी की मूर्तियों”

कोंगो रिकिशी की मूर्तियों
मुरोमाची काल (होतोकू युग चौथा साल, 1452 ईo)