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यह मीइदेरा मंदिर में ज़ेन बौद्ध वास्तुकला का एकमात्र उदाहरण है। यह मूल रूप से यामागुची प्रान्त में कोकुशोजी (वर्तमान तोशुन्जी) मंदिर में शास्त्र का भण्डार हुआ करता था, जिसे सेनापति मोरी तेरुमोतो ने 1602 ईo में आज की जगह पर स्थानांतरित किया था।
इस इमारत के बाहरी भाग के कातोमादो कहि जाने वाली खिड़की, नालीदार जाली के धनुष स्तंभ, और आंतरिक भाग के फर्श, स्तंभ और दर्पण वाली छत ज़ेन बौद्ध धर्म की विशिष्ट वास्तुकला को समेटे हुए हैं।
ईमारत के अंदर, केंद्र में, एक अष्टकोणीय घूमने वाला भण्डार है, जिसमें सभी बौद्ध धर्मग्रंथ रखे हुए हैं। यह प्राचीन ज़ेन शैली का मुरोमाची काल का ग्रन्थ भण्डार है जहां एक खंभे को दराज की सतह के सामने खड़ा किया गया है, जिसे उरुषि (लाह) से पोता गया है और इसके छत के सभी किनारों पर हवा उठती है। यह मुरोमाची काल के ज़ेन शैली ग्रन्थ भण्डार का एक बहुमूल्य उदाहरण है।

“ज़ेन बौद्ध वास्तुकला”

वह वास्तुशिल्पीय शैली जिसे प्रारंभिक कामाकुरा काल में ज़ेन बौद्ध भिक्षुओं द्वारा चीन से लाया गया। इसे कारायो भी कहते हैं।

“तोशुन्जी”

यामागुची शहर के मिज़ु नो उए में स्थित रिन्ज़ाई संप्रदाय के केन्निंजी पंथ का एक मंदिर। यह मंदिर हागी नामक जगह से अपने वर्तमान स्थान पर 1871 ईo में स्थानांतरित किया गया, उससे पहले तक यहाँ, ओउची मोरिहरू (1377–1431) जो उस वक्त का एक प्रांतीय सेनानायक था के द्वारा बनाया गया कोकुशोजी मंदिर था। वर्तमान में, तोशुंजी मंदीर के सीमा में, मीइदेरा में स्थानांतरित किये जा चुके इस्साइक्योज़ो की आधारशिला अभी भी मौजूद है ।

“मोरी तेरुमोतो”

मोरी तेरुमोतो (1553-1625) आज़ुची मोमोयामा काल का एक सैन्य सरदार था। मोतोनारी का पोता और ताकामोतो का बेटा। पहले वह आशिकागा योशिआकी की सेवा में था और ओदा नोबुनागा के खिलाफ था, पर होन्नोजी के हादसे के बाद उसने तोयोतोमी हिदेयोशी के साथ समझौता कर लिया और वह पांच बुजुर्गो के संघ (पांच ताकतवर सामन्त) का एक सदस्य बना। सेकीगाहारा के युद्ध में, वह पश्चिमी सेना का कप्तान बन गया, पर उसकी पराजय के बाद उसके अधिकार क्षेत्र घटाकर सिर्फ दो प्रान्त सुओउ और नागातो तक सिमित कर दिए गए।

“कातोमादो”

कातोमादो

यह एक पारंपरिक ज़ेन शैली की वास्तुकला है, जो अधिकतर सान्कारातो खांचेदार लकड़ी के दरवाज़े और राम्मा (लकड़ी की पट्टी जो झरोखे में लगी होती है ) में इस्तेमाल होती है। कुमिको (महिन लकड़ी का काम) में जालियों पर फूलो की आकृति बनी होती है इसलिए इसे हानाराम्मा (हाना जापानी में फूल को कहते हैं ) भी कहते हैं। इस कुमिको को हानाकुमिको या हानाको भी कहते है।

“नालीदार जाली के धनुष स्तंभ”

नालीदार जाली के धनुष स्तंभ

धनुष के आकार का पतली स्तंभों वाला एक राम्मा। जिसे तरंग स्तंभ भी कहते है।

“दर्पण वाली छत”

दर्पण वाली छत

दर्पण वाली छत जो ज़ेन वास्तुकला शैली में उपयोग में आते हैं।

“घूमने वाला भण्डार”

घूमने वाला भण्डार

यह एक अष्टकोणीय घूमने वाला भण्डार है, जो हॉल के केंद्र में स्थापित एक अक्ष से जुड़ा है ताकि ये आसानी से चारो तरफ घूम सके। इसमें सारे इस्साइक्यो बौद्ध सूत्र ( बौद्ध धर्मग्रंथ) भंडार किये गए हैं। कहा जाता है कि इसका अविष्कार फु ता-शिह के द्वारा चीन के उत्तर-दक्षिणी राजवंशों के काल में हुआ था। इसे तेंरिन्ज़ो भी कहते हैं।

“धर्मग्रंथ”

बौद्ध धर्मग्रंथों के लिए सामान्य नाम, जिसमें सुत्त पिटक, विनय पिटक, अभिधम्म पिटक तीन मुख्य ग्रन्ध एवं उनकी टिपण्णी शामिल है। इसे त्रिपिटक भी कहते हैं।

“उरुषि से पोता गया”

उरुषि से पोता गया

“हाफु”

हाफु

आमतौर पर त्रिअंकी छत के किनारों पर लगे ओलती तख़्ता ( जो किनारे से लगने वाली तेज़ हवा और बारिश से छत की रक्षा करती है ) को कहते हैं

मुरोमाची काल