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इस भवन को 1616ईo में बिज़ोजी मंदिर के नांशोबो के अंदर बनाया गया था, जो कि मीइदेरा मंदिर की पांच शाखाओं में से एक है। इसे 1909 ईo में मीइदेरा मंदिर के दक्षिणी भाग में ले जाया गया और फिर 1956 ईo में मरम्मत कार्य के दौरान वर्तमान स्थान पर दुबारा स्थान्तरित कर बनाया गया।
बिशामोन्दो एक बौद्ध हॉल है जिसमें बिशामोन्तेन​ (वैसरोवाणा) की एक प्रतिमा स्थापित है। इस इमारत को ज़ेन शैली की वास्तुकला में डिज़ाइन किया गया है जिसमें कुमिमोनो लकड़ी के ब्रैकेट जैसी विशिष्ट जापानी विशेषताएं देखी जा सकती हैं। भवन के सामने में सांकारातो पैनल वाले लकड़ी के दरवाजों पर हानाज़ामा फूल पैटर्न जालीदार और अन्य जटिल डिजाइन मोमोयामा काल (1573-1600) की सुरुचिपूर्ण शैली को प्रदर्शित करते हैं। 1989 ईo में किए गए नवीकरण के काम के दौरान इस भवन की मूल भव्य सजावट को बहाल किया गया है।

“मीइदेरा मंदिर की पांच शाखाओं”

मीइदेरा मंदिर की शाखाएँ, हेइआन काल से ज्यादह से ज्यादह लोगो को मोक्ष दिलाने के लिए, मीइदेरा मंदिर के आस पास ही बनाई गई थी, जिनमे गोंशोजी, बीम्योजी, बिज़ोजी, सुइकांजी और जोज़ाइजी मंदिर शामिल हैं इन सबको गोबेश्शो कहते हैं ।
मूल रूप से, बेश्शो एक धार्मिक संस्था है जिसे एक बड़े मंदिर के संरक्षण में मुख्य मंदिर से दूर एक पवित्र स्थान में स्थापित किया जाता था। यह उन ब्रह्मचारियों के लिए एक सभा स्थल भी था जो दुनिया को छोड़ आए थे , उसके अलावा घुमन्तु संतो और पहाड़ी भिक्षुओ का भी शरण स्थल था।

“बिज़ोजी मंदिर”

मीइदेरा मंदिर की पांच शाखाओ में से एक। कहा जाता है की इसकी स्थापना हेइआन काल में मीइदेरा मंदिर के आचार्य केइसो द्वारा की गई थी, और उन्होंने इसमें ग्यारह-मुखी कान्नोन प्रतिमा को मुख्य देवता के रूप मे स्थापित किया जो की शिगादेरा मंदिर में स्थापित थी और जो सम्राट तेन्जी से सम्बंधित थी। एदो काल में श्रद्धालुओं की भीड़ अपनी मनोकमना पूरी करवाने के लिए आने लगी, और इतनी भीड़ होती थी की लोगो की टोपी तक गिर जाती थी इसलिए यह कासा-नुगे-नो-कान्नोन (कासा=टोपी, नुगे=खुलना) भी कहलाने लगा। वर्तमान में यह महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर नामांकित है, और मीइदेरा मंदिर के सांस्कृतिक धरोहर कक्ष में रखी हुई है। बिज़ोजी मंदिर मेइजि काल में नष्ट कर दी गई, और उस स्थान पर ओत्सू शहर के नागारा पार्क की स्थापना हुई। 1995 ईo में ओत्सू नगर क्राफ्ट्स पविलिअन /मित्सुहाशी सेत्सुको संग्रहालय का उदघाटन हुआ, जो अपनी प्राकृतिक सुन्दरता की वजह से लोगो को आकर्षित करता है।

“ज़ेन शैली”

प्रारंभिक कामाकुरा काल में खासकर ज़ेन संप्रदाय के ज़ेन संतो द्वारा चीन से लाई गई वास्तुकला शैली। इसे कारायो भी कहते है ।

“कुमिमोनो”

कुमिमोनो

यह मुख्य रूप से खंभे के शीर्ष पर स्थित होता है। इसकी संरचना एक बीम को सहारा देने के लिए होता है जोकि ब्लॉक और ब्रैकेट से जुड़ छत को सहारा देता है। इसे तोक्यो या मासुगुमी भी कहा जाता है।

“बिशामोन्तेन”

बिशामोन्तेन

चार स्वर्गीय राजाओं और 12 देवताओं में से एक। कहा जाता है कि वह सुमेरु पर्वत के उत्तर में आधी ऊंचाई पर रहते हैं और यक्ष और राक्क्ष्स से उत्तरी दिशा की रक्षा करते हैं और वह सम्पति की भी सुरक्षा करते हैं। देखने में किसी क्रोधित योद्धा की तरह कवच पहने हुए एक हाथ में धौरहरा थामे और दुसरे हाथ में त्रिशूल या खज़ाना टावर पकडे हुए खड़े हैं। जापान की शिचिफुकुजिन (सात अच्छी किस्मत के देवता) में से एक इनको तामोन्तेन भी बुलाते हैं यह नाम आमतौर पर चार स्वर्गीय राजाओं को सूचीबद्ध करते समय इस्तेमाल किया जाता है। इनका एक और नाम कुबिरा (कुबेर देव ) भी है जो भारतीय लोक-साहित्य में धन के देवता माने जाते हैं।

“सांकारातो”

सांकारातो

एक दरवाजा जिसमे बाहरी दरवाज़े के ढांचे को फ्रेम में डालकर उसमे पैनल और रेंजी (श्रंखला) को सेट किया गया हो।

“हानाज़ामा”

हानाज़ामा

यह एक ज़ेन शैली है जो संकारातो पैनल वाले लकड़ी के दरवाजों या अध्ययन कक्ष के राम्मा (लकड़ी की पट्टी जो झरोखे में लगी होती है ) में इस्तेमाल होता है। कुमिको (महिन लकड़ी का काम) में जालियों पर फूलों की आकृति बनी होती है इसलिए इसे हानाराम्मा (हाना जापानी में फूल को कहते हैं ) भी कहते हैं। इस कुमिको को हानाकुमिको या हानाको कहते है।

“मोमोयामा काल”

युगों के वर्गीकरण में से एक। 16वीं शताब्दी के उत्तरार्ध के लगभग 20 वर्ष जिनमे सत्ता तोयोतोमी हिदेयोशी के हाथ में थी। कला के इतिहास में मोमोयामा काल से लेकर प्रारम्भिक एदो काल का समय, जो मध्यकाल से आधुनिक काल की ओर के परिवर्तन का समय है, इसे बहुत महत्वपूर्ण समय माना जाता है। विशेष रूप से, शानदार महल, इमारतें, मंदिर आदि का निर्माण और भवन के अन्दुरुनी भाग को सजाने वाले सजावटी चित्रों का विकास हुआ है। इसके अलावा, लोगों के जीवन को दर्शाता है और शिल्प कौशल की प्रगति जैसे कि मिटटी के बर्तन, लाह के काम, और रंगाई और बुनाई उल्लेखनीय हैं।

एदो काल (गेन्ना युग द्वितीय वर्ष 1616 ईo)